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कितीतरी दिवस
अंतराळात राहिलो आम्ही
परंतू नाही जाणू शकलो की
आपल्यासारखे कुठे तरी आणखी जगसुद्धा आहे,
आकाशाच्या वरती आणखी किती आहेत आकाश,
कोण राहतंय सृष्टीच्या
लक्षावधी आकाशगंगा,कोट्यवधी तारे आणि
अगणित ग्रह-उपग्रहांवर
आज पृथ्वीवर परतल्यानंतर
विचार करतोय की
त्यांनाही ठाऊक असेल का की
पृथ्वीनामक एका नगण्य ग्रहावरील
कुठल्याशा एका
लहानशा कोनाड्यात
नगण्यासारखे दिसणारे
आम्ही लोकदेखील आहोत
ज्यांच्या
विराट,अफाट स्वप्नांपुढे
लहान पडते,
ते सकल ब्रह्मांडसुद्धा!
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मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav
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मूळ हिंदी कविता
हमारी पृथ्वी
कितने दिन तो अंतरिक्ष में रहे हम
लेकिन नहीं जान पाए कि
हमारी जैसी कही कोई और दुनिया भी है
आकाश के ऊपर हैं और कितने आकाश
कौन रहता है सृष्टि की लाखों आकाशगंगाओं
करोड़ों सितारों
और असंख्य ग्रहों-उपग्रहों में
आज पृथ्वी पर लौटने के बाद
सोचते हैं कि उन्हें भी क्या पता होगा
कि पृथ्वी नाम के एक नगण्य से ग्रह के
किसी एक छोटे-से कोने में
नगण्य-से दिखने वाले हम लोग भी हैं
जिसके विराट सपनों के आगे
छोटा पड़ जाता है
वह समूचा ब्रह्मांड भी !
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©ध्रुव गुप्त
Dhruv Gupt
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पृथ्वी पर स्वागत और
आपके धैर्य को सलाम,
सुनीता और विलमोर !