ते आले हुते सायेब!
ते आले हुते सायेब
दोघं तिघं लोकं व्हते
म्हणत व्हते
मंत्रीसायबांचे जेवण हाय तुझ्याघरामधी
तुला निवडलंय हजारामधी
नशिबवान हायेस बेट्या तू
मी म्हणलो लईदा
की मंत्रीसायबांना लायक नाही माझं घर,
वीज नाय
पाणी नाय
भातही असा नुसताच तांदूळ शिजवून खाताव आम्ही
कधी एक टायम,
कधी कधी दोन टायमाला
माझं घर त्यांच्यासाठी योग्य नाही सायेब
मी बोल्लो लईबार्या
पण माज्या बोलण्याचं कवा महत्व व्हतं माज्या देशात
माज्या देशातल्या
पांढरंकापडंवाल्याम्होरं
ती लोकं म्हणले
सगळं व्हईल
तू फकस्त कोपर्यात बसायचं
फोटूच्या येळंस
ते आल्ते सायेब
घर रंगवून गेले
सगळं हिरवं हिरवं दिसाया लागलं सायेब
जनरेटर घिऊन आले ते
कूलर घिऊन आले
जेवणबी घिऊन आले
पत्रावळ्या-द्रोण सगळं सगळं व्हतं त्यांच्याजवळ
पाणीदेखील व्हतं येगळं
थंडगार आणि सवच्छ
त्यांनी सोताच केली सगळी येवस्था
मी नाय बा शिवलो कशालाबी
ना त्यास्नी,ना त्यांच्या जेवणाला ना त्यांच्या भांड्यांना
ते माझ्याबर बोलत पण नाहीत वो सायेब
फक्त जेवले
जेवत राहिले
माझ्याम्होरं फेकलं चूळा भरू भरू पाणी
आणि हात धुवूनशान निघून गेले
मला तर हे बी ठावं नाही सायेब
ती लोकं का आल्ती?
तुमीच सांगा सायेब
ती लोकं आपला भात
माझ्या घरात बसून का खाऊन गेल्याती?
मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav
मूळ हिंदी कविता
वे आये थे साहब
वे आये थे साहब
दो तीन लोग थे
बोल रहे थे
मंत्री जी का खाना है तुम्हारे घर
तुम्हे चुना है हजारो में
खुशकिस्मत हो तुम
मैंने कहा बहुत
कि मंत्री जी लायक नही है मेरा घर
बिजली नही है
पानी नही है
भात भी सिर्फ चावल उबाल कर खाते हैं
कभी एक टेम, कभी कभी दो टेम
मेरा घर उनके काबिल नही साहब
मैंने कहा बहुत
मगर मेरे कहने का कब मोल था मेरे देस में
मेरे देस के सफेदपोश के सामने
वे बोले
सब हो जाएगा
तुम बस कोने में बैठ जाना
फ़ोटो के बखत
वे आये साहब
घर पोत गए
सब हरा हरा दिखने लगा साहब
जनरेटर उठा लाये वे
कूलर ले आये
खाना भी ले आये
पत्तल-दोना सब था उनके पास
पानी भी था अलग
ठंडा औऱ साफ
उन्होंने खुद किया सब इन्तजाम
मैंने नही छुआ कुछ भी
ना उन्हें, ना उनका खाना ना उनके बर्तन
वे मुझसे बतियाये भी नही साहब
बस खाये
खाते रहे
मेरे सामने फेंका कुल्ले का पानी
और हाथ धो कर चले गए
मुझे तो यह भी नही पता साहब
वे क्यो आये थे
तुम ही बता दो साहब
वे अपनी भात
मेरे घर बैठकर क्यो खा कर गए
बोल रहे थे
मंत्री जी का खाना है तुम्हारे घर
तुम्हे चुना है हजारो में
खुशकिस्मत हो तुम
मैंने कहा बहुत
कि मंत्री जी लायक नही है मेरा घर
बिजली नही है
पानी नही है
भात भी सिर्फ चावल उबाल कर खाते हैं
कभी एक टेम, कभी कभी दो टेम
मेरा घर उनके काबिल नही साहब
मैंने कहा बहुत
मगर मेरे कहने का कब मोल था मेरे देस में
मेरे देस के सफेदपोश के सामने
वे बोले
सब हो जाएगा
तुम बस कोने में बैठ जाना
फ़ोटो के बखत
वे आये साहब
घर पोत गए
सब हरा हरा दिखने लगा साहब
जनरेटर उठा लाये वे
कूलर ले आये
खाना भी ले आये
पत्तल-दोना सब था उनके पास
पानी भी था अलग
ठंडा औऱ साफ
उन्होंने खुद किया सब इन्तजाम
मैंने नही छुआ कुछ भी
ना उन्हें, ना उनका खाना ना उनके बर्तन
वे मुझसे बतियाये भी नही साहब
बस खाये
खाते रहे
मेरे सामने फेंका कुल्ले का पानी
और हाथ धो कर चले गए
मुझे तो यह भी नही पता साहब
वे क्यो आये थे
तुम ही बता दो साहब
वे अपनी भात
मेरे घर बैठकर क्यो खा कर गए
©वीरेंदर भाटिया
Virendar Bhatia
उत्तर द्याहटवासगळं विदारक चित्र आहे की या देशामध्ये गरीब आणि गरजू लोकांना जणू मन भावनाच नाहीत . वंचित अभावग्रस्त लोकांचे प्रश्न मांडून पांढरपेशा मध्यमवर्गीय लोकांना अस्वस्थ केले आहे .