अन्वेषा वार्षिकी2024ः टिप्पणी

अन्वेषा वार्षिकी2024ः टिप्पणी

मानवीय त्रासदी के खिलाफ़ 
अपना मजबूत पक्ष रखनेवाली 
सामग्री से भरपूर: अन्वेषा वार्षिकी 2024

अन्वेषा वार्षिकी 2024 कुछ सप्ताह पहले प्राप्त हुई
जिसकी लम्बी प्रतिक्षा थी। सुविख्यात कवयित्री एवं एक्टिविस्ट कविता कृष्णपल्लवी जी एवं उनकी टिम ने 
इस अंक के लिए कितनी कड़ी मेहनत ली है। यह इसका महाआकार,पृष्ठसंख्या और सामग्री की मौलिकता से पता चलता है। कविताओं के संकलन में इतनी सारी विविधता आज तक किसी भी अंक में नही देखी गयी होगी! फिलिस्तीनी त्रासदी पर अन्वेषा वार्षिकी के इस अंक में कल्पना से परे इतनी संख्या में कविताएं हिन्दी अनुवाद के रुप में संकलीत हैं। जो पाठकों के लिए बड़ी उपलब्धी कही जा सकती है। 

भारत के विविध प्रांतों से,भाषाओं से कविताओं का चयन करना यह अपने आप में एक चुनौती भरा कार्य रहा होगा,जो कविता जी और उनके सहयोगियों ने बखुभी निभाया है। दुनिया भर के देशों में,भाषाओं में लिखते,लड़ते आए और स्मृतिशेष नामचिन कवियों की रचनाएं संकलित
करना भी सहजसाध्य नही है। सम्पादकीय जिम्मेदारी अच्छी तरह से निभाने के लिए सम्पादक कविता जी और टीम अन्वेषा को ढेरों बधाईयाॅं देते हुए बड़ा हर्ष होता है। अन्वेषा के मंच पर समूचे भारत से,दुनिया के कोने कोने से बेहतरीन कविताएं और पाठ्य सामग्री एकत्रित की गयी है। यह बहुत खुशी और गर्व की बात है।

अन्वेषा के इस बृहद अंक का सभी स्तरों पर हार्दिक स्वागत हो रहा है। अन्वेषा वार्षिकी 2025 भी ऐसे ही शानदार तरिके से प्रकाशित होने की पाठकों की उम्मीद 
इस अंक को देखकर निश्चित ही बढ़ी होगी।

अन्वेषा की माध्यम से समविचारधारावाले अन्य दोस्तों को जोड़ने की प्रक्रिया भी गतीमान हो जानी चाहिए ऐसी विनम्र कामना मैं करता हुं। क्यूँ की हमारे सामने दुश्मन बहुत बड़ा है और हमारी तादात उसके मुकाबले में कम,ऐसी हालात में अपने छोटे छोटे मतभेदों को मिटाकर फ़ासिस्टों से लडाई और भी तेज करने की अब जरुरत है। उसके लिए अन्वेषा का यह मंच कारगर साबित हो सकता है। इसलिए अन्वेषा में अभी भी बहूत से लेखक.कवी,एवं एक्टिविस्ट साथियों को शामिल कर लेने की अपार सम्भावनाएं बची है। इस तरफ मैं ध्यान आकर्षित करने की कोशिश करता हुं। 
ऐसा मेरा मानना है,उससे अन्वेषा परिवार का और विस्तार ही होगा और अपनी ताकत और बढ़ेगी। अन्वेषा की माध्यम से ढ़ेर सारे, अब तक जो अपरिचीत कवी,
अनुवादक एवं लेखक साथियों से जुड़ने का मौका मिला है।
आज के जमाने में समान विचारोंवाले जितना सम्पर्क में रहें
या जुडकर रहें उतना अपनी मुवमेंट के लिए बेहतर रहेगा।

सम्पादयिक में सम्पादक ने विस्तार से अपनी बात पाठकों की सामने रखी है। परिवर्तनवादी सोच रखनेवालों के संगठनों में अपनी अलग राय रखने की गुंजाईश रहनी ही चाहिए। जल संपृक्त नदी हो या अच्छे विचार वे निरंतर
गतीशील रहने चाहिए वर्ना उसे सडांध में बदल जाने से कोई रोक नही सकता। पहली बार किसी साहित्य पत्रिका का सम्पादन करने का दावा करनेवाली कविता जी ने इस अंक की यशस्विता से अपना सम्पादकिय लोहा मनवाया है। अन्वेषा का यह आगमन हिन्दी साहित्य जगत को सच
में चकित करनेवाला है। वामविचार दुनिया में जहाँ जहाँ पहूंचा हो वहां तक की आबो हवा इस अंक में संग्रहित
सामग्री से महसूस की जा सकती है लेकिन भारत में पनपे
वामपंथी विचार से इतनी दूरी क्यूँ? यह बात मेरी समझ से परे है। या वामविचार के बारे में मेरा आकलन कम रहा हो।

गज्जा की त्रासदी इस सदी की एक बड़ी त्रासदी कहलाएगी जो पूंजीवादी और युद्धखोर नीती की उपज है। 
इन्सान अपने इतिहास से कुछ भी सिखने के लिए तैय्यार नही है जो बार बार गलतियां करने से बाज नही आता। दुनिया का हर एक मुल्क किसी ना किसी धर्म की चादर ओढने का ढोँग रच रहा हो उस दौर में इन्सानियत की पैरवी करनेवाले विचारों की हम सब को सख्त से सख्त जरुरत महसूस हो रही है। कविताओं पर केंद्रित अन्वेषा के इस पत्रिका ने पाठकों को निश्चित ही साहित्यिक तृप्तता का अहसास बखूभी दिलाया है। हशिए की लोगों की तरफदारी करनेवाले दुनिया के तमाम काँम्रेडों को लाल सलाम। कवी किसी भी देश का हो उसके दुख दर्द में कुछ ज्यादा फ़र्क नही होता है। इन्सान की बुनियादी जरुरतो के लिए हो रहे संघर्ष में भी कितनी समानताएं हैं। इस बात की पुष्टी इन कविताओं को पढ़ने उपरान्त पाठकों को मिल सकती है।

कुल मिलाकर अन्वेषा की माध्यम से पाठकों को विचार
उत्तेजित करनेवाली सामग्री उपलब्ध हुई है। इस के लिए
सम्पादक कविता जी एवं उनके टीम के लिए साधुवाद।

भरत यादव
Bharat Yadav 

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