गांधीपुतळ्याकडे पाहताना
पाय शाबूत आहेत आणि
मूठ पण आवळलेली
मग फिकीर कशाची,
मग चिंता कसली
तुम्ही पुतळाच तोडू-फोडू शकता
हिंमत आणि आवेश नाही
पहा तो मूठ आवळलेला हात
तुटूनसुद्धा कसा ताठ आहे
कशी धरून ठेवलीये अहिंसेची काठी
उचललेत पाय....निघालेत पुढे
पुढे येताहेत
येताहेत तुमच्याचकडे
तुम्ही काय काय तोडाल?
कसे तोडाल?
तुम्ही पुतळाच तोडू-फोडू शकता
हिंमत आणि आवेश नाही
तुम्ही पाहिलंय एका गांधींना मारून
शेकडो हजारो गांधी उभे ठाकलेत
गल्ली-चौकांनी पुतळ्यांच्या रूपात
जनतेच्या हृदयात
आता तुम्ही काय कराल?
तुम्ही कुणाला माराल?
तुम्ही व्यक्तीलाच मारू शकता
त्याच्या विचारांना नव्हे
तुम्ही पुतळाच तोडू-फोडू शकता
हिंमत आणि आवेश नाही
मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav
मूळ हिंदी कविता
तोड़ी गई गांधी प्रतिमा को देखते हुए
पांव सलामत हैं और मुट्ठी भी बंधी हुई
फिर क्या फ़िक्र है, फिर क्या चिंता
तुम मूर्ति ही तोड़ सकते हो
हिम्मत और जज़्बा नहीं
देखो वो मुट्ठी बंधा हाथ
टूटकर भी कैसे तना है
कैसे थाम रखी है अहिंसा की लाठी
उठे हैं पांव...बढ़े जा रहे हैं
बढ़े आ रहे हैं
आ रहे हैं तुम्हारी ही तरफ़
सावधान...
तुम क्या क्या तोड़ेगे
कैसे तोड़ेगे
तुम मूर्ति ही तोड़ सकते हो
हिम्मत और जज़्बा नहीं
तुमने देख लिया एक गांधी को मारकर
सैकड़ों हज़ारों गांधी खड़े हो गए गली-चौराहे
बुतों की शक्ल में
अवाम के दिलों में
अब तुम क्या करोगे
तुम किसे मारोगे
तुम व्यक्ति को ही मार सकते हो
उसके विचारों को नहीं
तुम मूर्ति ही तोड़ सकते हो
हिम्मत और जज़्बा नहीं
©मुकुल सरल
mukul saral
(आपको बता दूं कि बिहार के चंपारण में महात्मा गांधी की प्रतिमा तोड़ दी गई है। गांधी जी ने इसी स्थान से चंपारण सत्याग्रह की शुरुआत की थी। यह प्रतिमा यहां चरखा पार्क में स्थापित थी। प्रतिमा रविवार, 13 फरवरी, 2022 की रात को क्षतिग्रस्त पाई गई थी। 14 फरवरी को इसकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर आईं।)