कानात असूड पडतोय जोरजोरात
जय श्रीराम ! जय श्रीराम !
घृणास्पद कारस्थानं उशीरापर्यंत खवळत राहातात
लहान-लहान नगरे आणि
शहरांमधील लहान लहान मातीच्या भांड्यांमध्ये
घुसमटलेल्या वातावरणाने घेरलेल्या
भरल्या कंठातून फुटतो चित्कार
अल्ला हो अकबर ! अल्ला हो अकबर !
सुन्न पडत जाते चेतना
उथळ महा-अट्टाहासात
एका अतोनात हिंदू काळात
एका लेकराचा कोमल किंचित तिखट आवाज
घूमतोय गल्लीत सकाळ-सकाळी
जशी हळू हळू पसरते शाई
हळू हळू पसरत जाते हतबलता...
मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav
मूळ हिंदी कविता
निहायत हिन्दू समय में
कान में चाबुक पड़ती है ज़ोर-ज़ोर से
जय श्री राम ! जय श्री राम !
घृणात्मक योजनाएँ देर तक खौलती हैं
छोटे-छोटे क़स्बों और शहरों के छोटे-छोटे मिट्टी के बर्तनों में
घुटन भरे माहौल में घिरे हुए
अवरुद्ध कण्ठ से फूटती है चीख़
अल्लाहु अकबर ! अल्लाहु अकबर !
सुन्न पड़ती जाती है चेतना
फूहड़ महाट्टाहास में
एक निहायत हिन्दू समय में
एक बच्चे की कोमल किंचित तीखी आवाज़
गूँजती है गली में सुबह-सुबह
जैसे धीरे-धीरे फैलती है स्याही
धीरे-धीरे फैलता जाता है विषाद...
©अदनान कफ़ील दरवेश
Adnan Kafeel Darwesh