बुलडोझर

बुलडोझर

बुलडोझर

दगडांनी नव्हे
घर स्वप्नांनी उभे राहाते
घामाने चिटकतात त्याच्या विटा
त्याच्या भिंती आपल्या शरीराचा विस्तार आहे
शरीराबाहेर आणखी एक शरीर

घराला पाडणे
शरीर तोडणे आहे
त्यावर बुलडोझर चालवणे
शरीराची हत्या करणे आहे

कमाल झाली
ही हत्या आता सामान्य झाली आहे
ढोलताशांच्या गजरात
उत्सवामध्ये बदलून गेली आहे

कुठे आहे कायदा?
न्यायालय कुठे आहे?
कुठे आहे आपल्या अंतरात्म्यात वसलेला आपला ईश्वर?

मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav 

मूळ हिंदी कविता

बुलडोज़र

पत्थरों से नहीं 
घर ख्व़ाबों से बनता है 
पसीने से चिपकती हैं उसकी ईंटें  
उसकी दीवारें हमारे शरीर का विस्तार हैं 
शरीर के बाहर एक और शरीर

घर को तोड़ना 
शरीर को तोड़ना है
उस पर बुलडोज़र चलाना 
शरीर की हत्या करना है 

कमाल है 
यह हत्या अब आम हो गई है 
ढोल ताशों के संग 
उत्सव में बदल गई है

कहाँ है कानून
न्यायालय कहाँ है 
कहाँ है हमारी अंतरात्मा में बैठा हमारा ईश्वर?

©संजीव कौशल
sanjeev koushal

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