एकाच साडीत ती
सकाळी उठते
आंघोळ करते
पाणी भरते
शेजारिणीशी बोलते
भांडण करते
एकाच साडीत ती
तांदूळ शिजवते
जेवण बनवते
खाऊ घालते
खाते
घामाने भिजते
पंखा हलवते
झोपी जाण्याचे सोंग घेते
दिवाबत्ती करते
एकाच साडीत ती
सडा-सारवण करते
अंथरूण टाकते
स्वतःला अंथरते
स्वप्नं विणते
एकाच साडीत ती
सगळं काही करते
एकाच साडीत ती
मरण पावते.
मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav
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मूळ हिंदी कविता
एक ही साड़ी में वह
एक ही साड़ी में वह
सुबह उठती है,नहाती है
पानी भरती है
पड़ोसन से बात करती है
झगड़ा करती है
एक ही साड़ी में वह
चावल बीनती है,खाना बनाती है
खिलाती है,खाती है
पसीने से भींगती है,पंखा झलती है
सोने का बहाना करती है
संध्या-अर्चना करती है
एक ही साड़ी में वह
चौका-बासन करती है
बिछौना बिछाती है,ख़ुद बिछती है
सपने बुनती है
एक ही साड़ी में वह
सब कुछ करती है
एक ही साड़ी में वह
मर जाती है ।।
©प्रमोद बेरिया
Pramod Beria