कृष्ण
कृष्ण कुणी देव नव्हते
एक विद्रोही माणूस होते
विद्रोही जो स्वर्गाच्या-इंद्राच्या सत्तेविरोधात
बोटावर पर्वत पेलून उभा राहिला होता.
विद्रोही जो कंसाच्या अत्याचाराविरूद्ध
त्याच्याच नगरीत जाऊन उभा ठाकला होता
विद्रोही जो स्त्रियांच्या मुक्तीसाठी
जरासंधाविरूद्ध उभा राहिला होता
विद्रोही जो महिलांच्या सन्मानासाठी
कुरू साम्राज्याविरूद्ध उभा होता
विद्रोही जो प्रेमासाठी
सामाजिक रूढींविरोधात
उभा राहिला होता
विद्रोही जो दुधा-दह्याच्या हंड्या
फोडायचा
शहरात जाणारे गोकुळातले दूध रोखण्यासाठी.
विद्रोही जात नसतात वनात
वर्षानुवर्षे तप करून एखादे रहस्य
जाणण्यासाठी
विद्रोही हे समाजात राहूनच उभे ठाकत असतात
सामाजिक सुधारणांसाठी.
मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav
मूळ हिंदी कविता
कृष्ण कोई ईश्वर नही थे
एक विद्रोही मनुष्य थे।
विद्रोही जो स्वर्ग की सत्ता के विरुद्ध,
उंगली पर पर्वत उठाए खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो कंस के अत्याचारों के विरुद्ध
उसके ही नगर में जाकर खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो स्त्रियों की मुक्ति के लिए
जरासंध के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो स्त्री के सम्मान के लिए
कुरु साम्राज्य के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो प्रेम के लिए
सामाजिक रूढियों के विरुद्ध खड़ा हो गया था।
विद्रोही जो मटकियां फोड़ता था
नगर जाते गांव के दुग्ध को रोकने के लिए।
विद्रोही नही जाते हैं वन में वर्षों तप करके
किसी रहस्य को जानने के लिए
विद्रोही समाज मे रहकर ही खड़े हो जाते हैं
उसके सुधार के लिए।
©अविनाश कुमार तिवारी
Avinash Kumar Tiwari