बुद्धाचा खांदा

बुद्धाचा खांदा

बुद्धाचा खांदा

तिथे धर्माचा नंगा धंदा रे
इथे बुद्धाचा प्रिय खांदा रे

श्वास भर आणि मार भरारी
इथे न कसलाही फंदा रे

संधी आहे,माणूस बनण्याची
इथे चालतो बुद्धाचा रंधा रे

तू ग्रहण पण मी पाहिले
सूर्याच्या माथ्यावर चंदा रे

जो पाहू नाही शकत मन
तो डोळे असूनी आंधळा रे

जो स्वप्रतिमा तोडू शके
तोच बुद्ध रुपाया बंदा रे

मराठी अनुवाद
भरत यादव
Bharat Yadav 

मूळ हिंदी कविता

बुध्द का कंधा

वहाँ  धर्म  का  नंगा  धंधा है
यहाँ बुध्द का प्यारा कंधा है। 

सांस भरो और उड़ जाओ
यहाँ नहीं एक भी फँदा है। 

अवसर है, मानव बनने का
यहाँ चलता बुद्ध का रंदा है। 

तुमने ग्रहण पर मैंने देखा
सूरज के सिर पर चंदा है। 

जो देख नहीं पाता हो मन
वो आँखों  वाला अंधा  है। 

जो ख़ुद की मूरत  तोड़ सके
वही बुद्ध के माफ़िक़ बंदा है।

वो उन पर भी कर सकता है
वो बुद्ध का छोड़ा परिंदा  है। 

©बच्चा लाल 'उन्मेष'
Bachcha Lal Unmesh 
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